Thursday 1 July 2010

उत्तराखंड के पहाड़ों में पाए जाने वाला कांटेदार टिमरू है रामबाण

पहाड़ में अधिकांश स्थानों पर पाया जाने वाला टिमरू एक कांटेदार पेड़ है। यह सिर्फ कांटेदार नहीं कई दवाईयों और टोटकों के साथ कई अन्य मामलों में भी इसका प्रयोग होता है। बदरीनाथ और केदारनाथ में इसकी टहनी को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
पहाड़ के सभी जिलों में टिमरू बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। गढ़वाल में इसकी प्रमुख रूप से पांच प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें एलेटम आरमैटम प्रमुख हैं। इसका वानस्पतिक नाम जैन्थोजायलम एलेटम है। दांतों के लिए विशेषकर दंत मंजन, दंत लोशन व बुखार में यह काम आता है। इसके फल को भी कई उपयोगों में लाया जाता है। इसका फल पेट के कीड़े मारने व हेयर लोशन के काम में भी आता है। कई दवाइयों में इसके पेड़ का प्रयोग किया जाता है। टिमरू के मुलायम टहनियों को दांत में रगड़ने से जो चमक आती है वह बाजार के किसी भी टूथपेस्ट या मंजन से नहीं आ सकती है। यह आपके दांतों को मजबूत रखने के साथ ही दातों में कीड़ा नहीं लगने देता। यह मसूड़ों की बीमारी के लिए भी रामबाण का काम करता है। गांव में आज भी कई बुर्जुग लोग इसकी टहनियों से ही दंतमंजन करते आ रहे हैं। टिमरू औषधीय गुणों से युक्त तो है ही, साथ ही इसका धार्मिक व घरेलू महत्व भी है। टिमरू का छोटा तना प्रसाद के रूप में हिन्दुओं प्रसिद्ध धाम बदरीनाथ व केदारनाथ में प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है। यही नहीं गांव में लोग किसी बुरी नजर से बचने के लिए इसके तने को काटकर अपने घरों में भी रखते हैं। गांव में लोग इसके पत्ते को गेहूं के बर्तन में डालते हैं, क्योंकि इससे गेहूं में कीट नहीं लगते।

2 comments:

  1. लिखते रहिये,सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार


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