Wednesday 28 April 2010

घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की


इस गाने मैं नेगी जी ने एक गढ़वाली बेटी की भावनाओं की कल्पना की है की वो शादी के बाद कैसे अपने मैत के यादों मैं ये कल्पना करती है जब फाल्गुन का महिना ख़तम हो जाता है और चैत का महिना शुरू हो जाता है तब घुघूती की सुरेली आवाज उन डांडी कांठियों मैं गूंजती है उस घुघूती की सुरीली अवाज्को सुनकर बेटी ब्वारियों को अपने मैत की खुद लगाती हैं वो अपने मैत से आने वाले रैबार का इन्तजार करती रहती हैं और उस चैत के महीने मैं गाँव मैं बेटी ब्वारियों को कहीं दूर जब घुघूती की सुरीली आवाज सुनाई देती है तो तब उनें इस गाने को गाया गया है

घुगुती  घुरोण  लागी म्यार  मैत  की
बौडी  बौडी आयी गे  ऋतू , ऋतू चेत  की
डांडी   कांठियों  को हूए, गौली  गए  होलू
म्यारा मेता को बोन , मौली  गए  होलू
चाकुला  घोलू  छोडी , उड़ना  हवाला 
बेठुला  मेतुदा  कु , पेताना  हवाला
घुगुती  घुरोण  लागी हो ......................


घुगुती  घुरोण  लागी म्यार  मैत  की
बौडी  बौडी आयी गे  ऋतू , ऋतू चेत  की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की

डान्दियुन खिलना  होला , बुरसी का  फूल
पथियुं  हैसनी  होली , फ्योली  मोल मोल
कुलारी  फुल्पाती  लेकी , देल्हियुं  देल्हियुं जाला 
दग्द्या  भग्यान  थडया, चौपाल  लागला
घुगुती  घुरोण  लागी म्यार  मैत  की
बौडी  बौडी आयी गे  ऋतू , ऋतू चेत  की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की

तिबरी  मा  बैठ्या  हवाला, बाबाजी उदास
बतु  हेनी  होली  माजी , लागी  होली  सास
कब म्यारा मैती  औजी , देसा  भेंटी  आला 
कब म्यारा भाई बहनों  की राजी खुशी ल्याला
घुगुती  घुरोण  लागी म्यार  मैत  की
बौडी  बौडी आयी गे  ऋतू , ऋतू चेत  की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की

ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की

 

जंगली जानवरों की आबादी में दस्तक

पर्वतीय क्षेत्र में सबसे अधिक तेंदुए व गुलदार का आतंक छाया रहता है। जबकि फसल चौपट करने में सबसे बड़ी भूमिका जंगली सुअरों की सामने आ रही है। इस विषय पर प्रभागीय वनाधिकारी सिविल सोयम प्रेम कुमार का कहना है कि जंगली जानवरों की आबादी की ओर आने की बढ़ रही घटनाओं के कई कारण हैं। पहली बात यह है कि जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास में मानवीय हस्तक्षेप, सूखते जलस्रोत, कम होता चारा, विकास के क्रम में जंगलों को चीरती सड़कें सामान्यतया मुख्य कारण हैं। उनका कहना है कि जब तक वनों में आदमी की पहुंच सहज नहीं थी तो जंगली जानवरों का रुख भी आबादी की ओर नहीं था।
प्रभागीय वनाधिकारी का मानना है कि वन्य जीवों का भी पूरा एक चक्र है जो एक दूसरे पर आधारित हैं। तेंदुए या बाघ आदि का भोजन जंगलों के हिरन, घुरड़, काकड़, खरगोश जैसे जानवर होते हैं। जंगलों में लगातार जलस्रोत सूखने के कारण चारा खत्म हो रहा है। भोजन की तलाश में जंगली पशु भटकते हैं तो आबादी की ओर पहुंच जाते हैं। एक कारण बूढ़े होते तेंदुए भी सहज शिकार की तलाश करते हैं, जिसके चलते इनका रुख भी आबादी की ओर हो रहा है।
सुअरों की बढ़ती संख्या, फसलों की नुकसान का बड़ा कारण है। उनका कहना है कि इसके लिए वन विभाग कारगर योजना बनाने की तैयारी कर रहा है। पिछले दो-तीन वर्षो की घटनाओं पर नजर डालें तो अकेले चौखुटिया व चमोली गढ़वाल से लगे क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक लोगों के तेंदुए ने मार डाला। धामस में युवक को निवाला बना लिया। द्वाराहाट के समीप मिरई में भालू के हमले से महिला की मौत हो गई। जंगली जानवरों की हमले की घटनाएं तो सैकड़ों की संख्या में हैं। पूरे जिले में नजर डालें तो बाघ के हमले से सैकड़ों की संख्या में पालते पशु मारे गए हैं। उसमें बिन्सर सेंचुरी क्षेत्र में घटनाएं अधिक हुई हैं। बहरहाल पूरे जिले में लगातार आबादी की ओर जंगली जानवरों क रुख बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं।