Wednesday 28 April 2010

जंगली जानवरों की आबादी में दस्तक

पर्वतीय क्षेत्र में सबसे अधिक तेंदुए व गुलदार का आतंक छाया रहता है। जबकि फसल चौपट करने में सबसे बड़ी भूमिका जंगली सुअरों की सामने आ रही है। इस विषय पर प्रभागीय वनाधिकारी सिविल सोयम प्रेम कुमार का कहना है कि जंगली जानवरों की आबादी की ओर आने की बढ़ रही घटनाओं के कई कारण हैं। पहली बात यह है कि जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास में मानवीय हस्तक्षेप, सूखते जलस्रोत, कम होता चारा, विकास के क्रम में जंगलों को चीरती सड़कें सामान्यतया मुख्य कारण हैं। उनका कहना है कि जब तक वनों में आदमी की पहुंच सहज नहीं थी तो जंगली जानवरों का रुख भी आबादी की ओर नहीं था।
प्रभागीय वनाधिकारी का मानना है कि वन्य जीवों का भी पूरा एक चक्र है जो एक दूसरे पर आधारित हैं। तेंदुए या बाघ आदि का भोजन जंगलों के हिरन, घुरड़, काकड़, खरगोश जैसे जानवर होते हैं। जंगलों में लगातार जलस्रोत सूखने के कारण चारा खत्म हो रहा है। भोजन की तलाश में जंगली पशु भटकते हैं तो आबादी की ओर पहुंच जाते हैं। एक कारण बूढ़े होते तेंदुए भी सहज शिकार की तलाश करते हैं, जिसके चलते इनका रुख भी आबादी की ओर हो रहा है।
सुअरों की बढ़ती संख्या, फसलों की नुकसान का बड़ा कारण है। उनका कहना है कि इसके लिए वन विभाग कारगर योजना बनाने की तैयारी कर रहा है। पिछले दो-तीन वर्षो की घटनाओं पर नजर डालें तो अकेले चौखुटिया व चमोली गढ़वाल से लगे क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक लोगों के तेंदुए ने मार डाला। धामस में युवक को निवाला बना लिया। द्वाराहाट के समीप मिरई में भालू के हमले से महिला की मौत हो गई। जंगली जानवरों की हमले की घटनाएं तो सैकड़ों की संख्या में हैं। पूरे जिले में नजर डालें तो बाघ के हमले से सैकड़ों की संख्या में पालते पशु मारे गए हैं। उसमें बिन्सर सेंचुरी क्षेत्र में घटनाएं अधिक हुई हैं। बहरहाल पूरे जिले में लगातार आबादी की ओर जंगली जानवरों क रुख बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं।

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