यह वीर है उस पुण्य भूमि का, जिसको मानसखंड , केदारखंड, उत्तराखंड कहा जाता है, स्वतंत्रता संग्रामी श्री देब सुमन किसी परिचय के मोहताज़ नही हैं, पर आज की नई पीड़ी को उनके बारे में, उनके अमर बलिदान के बारे में पता होना चाहिए, जिससे उन्हें फक्र हो इस बात पर की हमारी देवभूमि में सुमन सरीखे देशभक्त हुए हैं।
सुमन जी का जनम १५ मई १९१५ या १६ में टिहरी के पट्टी बमुंड, जौल्ली गाँव में हुआ था, जो ऋषिकेश से कुछ दूरी पर स्थित है। पिता का नाम श्री हरी दत्त बडोनी और माँ का नाम श्रीमती तारा देवी था, उनके पिता इलाके के प्रख्यात वैद्य थे। सुमन का असली नाम श्री दत्त बडोनी था।
बाद में सुमन के नाम से विख्यात हुए। पर्ख्यात गाँधी- वादी नेता, हमेशा सत्याग्रह के सिधान्तों पर चले। पूरे भारत एकजुट होकर स्वतंत्रता की लडाई लड़ रहा था, उस लडाई को लोग दो तरह से लड़ रहे थे कुछ लोग क्रांतिकारी थे, तो कुछ अहिंसा के मानकों पर चलकर लडाई में बाद चढ़ कर भाग ले रहे थे, सुमन ने भी गाँधी के सिधान्तों पर आकर लडाई में बद्चाद कर भाग लिया। सुन्दरलाल बहुगुणा उनके साथी रहे हैं जो स्वयं भी गाँधी वादी हैं।
परजातंत्र का जमाना था, लोग बाहरी दुश्मन को भागने के लिए तैयार तो हो गए थे पर भीतरी जुल्मो से लड़ने की उस समय कम ही लोग सोच रहे थे और कुछ लोग थे जो पूरी तरह से आजादी के दीवाने थे, शायद वही थे सुमन जी, जो अंग्रेजों को भागने के लिए लड़ ही रहे थे साथ ही साथ उस भीतरी दुश्मन से भी लड़ रहे थे। भीतरी दुश्मन से मेरा तात्पर्य है उस समय के क्रूर राजा महाराजा। टिहरी भी एक रियासत थी, और बोलंदा बद्री (बोलते हुए बद्री नाथ जी) कहा जाता था राजा को।
श्रीदेव सुमन ने मांगे राजा के सामने रखी, और राजा ने ३० दिसम्बर १९४३ को उन्हें गिरफ्तार कर दिया विद्रोही मान कर, जेल में सुमन को भरी बेडियाँ पहनाई गई, और उन्हें कंकड़ मिली दाल और रेत मिले हुए आते की रोटियां दी गई, सुमन ३ मई १९४४ से आमरण अन्न शन शुरू कर दिया, जेल में उन्हें कई अमानवीय पीडाओं से गुजरना पड़ा, और आखिरकार जेल में २०९ दिनों की कैद में रहते हुए और ८४ दिनों तक अन्न शन पर रहते हुए २५ जुलाई १९४४ को उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी लाश का अन्तिम संस्कार न करके भागीरथी नदी में बहा दिया । मोहन सिंह दरोगा ने उनको कई पीडाएं कष्ट दिए उनकी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए कई बार पर्यास किया पर सफल नही हुआ।
कहते हैं समय के आगे किसी की नही चलती वही भी हुआ, सुमन की कुछ मांगे राजा ने नही मानी, सुमन जो जनता के हक के लिए लड़ रहे थे राजा ने ध्यान नही दिया, आज न राजा का महल रहा, न राजा के पास सिंहासन। और वह टिहरी नगरी आज पानी में समां गई है। पर हमेशा याद रहेगा वह बलिदान और हमेशा याद आयेगा क्रूर राजा।
और अब मेरे शोध से लिए गए कुछ तथ्य:-
सुमन को कुछ लोग कहते हैं की उनकी लडाई केवल टिहरी रियासत के लिए थी, पर गवाह है सेंट्रल जेल आगरा से लिखी उनकी कुछ पंक्तियाँ की वह देश की आज़ादी के लिए भी लड़ रहे थे।
"आज जननी उगलती है अगनियुक्त अंगार माँ जी,
आज जननी कर रही है रक्त का श्रृंगार माँ जी।
इधर मेरे मुल्क में स्वधीनता संग्राम माँ जी,
उधर दुनिया में मची है मार काट महान माँ जी। "
उनकी शहादत को एक कवि ने श्रधान्जली दी है-
"हुवा अंत पचीस जुलाई सन चौवालीस में तैसा, निशा निमंत्रण की बेला में महाप्राण का कैसा?
मृत्यु सूचना गुप्त राखी शव कम्बल में लिपटाया, बोरी में रख बाँध उसको कन्धा बोझ बनाया।
घोर निशा में चुपके चुपके दो जन उसे उठाये, भिलंगना में फेंके छाप से छिपते वापस आए।"
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी ने सुमन जी को याद करते हुए लिखा था-
"मै हिमालयन राज्य परिषद् के प्रतिनिधि के रूप में सेवाग्राम में गाँधी जी से १५ मिनट तक बात करते हुए उनसे मिला था, उनकी असामयिक मृत्यु टिहरी के लिए कलंक है। "
और सुंदर लाल बहुगुणा जी ने कहा-
"सुमन मरा नही मारा गया, मेने उसे घुलते-घुलते मरते देखा था। सुमन ने गीता पड़ने को मांगी थी पर नही दी गई, मरने पर सुमन का शव एक डंडे से लटकाया गया, और उसी तरह नदी में विसर्जित कर दिया गया।"
परिपूर्ण नन्द पेन्यूली ने कहा था-
"रजा को मालिक और स्वयं को गुलाम कहना उन्हें अच्छा नही लगा, जबकि राजा और प्रजा में पिता पुत्र का सम्बन्ध होता है।"
अपनी पत्नी विनय लक्ष्मी को उन्होंने कनखल से पत्र लिखा-
" माँ से कहना मुझे उनके लिए छोड़ दें जिनका कोई बेटा नही।"
और साथ में खर्चे की कमी के लिए उन्होंने लिखा-
"राह अब है ख़ुद बनानी, कष्ट, कठिनाइयों में धेर्य ही है बुद्धिमानी"
१९ नवम्बर १०४३ सुमन को आगरा जेल से मुक्त किया गया आगरा जेल से छोटने के पश्चात सुमन ने पुनह टिहरीराज्य में प्रवेश कर जन सेवा करने का निर्णय लिया !तो उनके कुछ शुभचिंतकों ने उन्हें टिहरी राज्य की भीषण स्थिति से अवगत कराया और खा की ऐसी स्थिति में टिहरी राज्य में प्रवेश करना खतरे से खाली नहीं हैं !
इस पर सुमन से उत्तर दिया मेरा कार्य क्षेत्र टिहरी में ही है वहीं कार्य करना व जनता के अधिकारों के लिए सामन्ती शासन के विरुद्ध लड़ना व मरना मेरा पुनीत कर्तब्य है !मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा,किन्तु टिहरी राज्य के नागरिक अधिकारों को सामन्ती शासन के पंजे से नहीं कुचलने दूंगा !
१५ दिसम्बर १९४३ को उन्होंने जनरल मिनिस्टर को पत्र लिखा कि मैं शान्ति कि भावना से मिलना चाहता हूँ !१८ दिसम्बर को वो नरेंद्र नगर पहुंचे ,मुख्य पुलिस अधिकारी उन्हें टिहरी जाने कि अनुमति दे दी !
इस पर सुमन से उत्तर दिया मेरा कार्य क्षेत्र टिहरी में ही है वहीं कार्य करना व जनता के अधिकारों के लिए सामन्ती शासन के विरुद्ध लड़ना व मरना मेरा पुनीत कर्तब्य है !मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा,किन्तु टिहरी राज्य के नागरिक अधिकारों को सामन्ती शासन के पंजे से नहीं कुचलने दूंगा !
१५ दिसम्बर १९४३ को उन्होंने जनरल मिनिस्टर को पत्र लिखा कि मैं शान्ति कि भावना से मिलना चाहता हूँ !१८ दिसम्बर को वो नरेंद्र नगर पहुंचे ,मुख्य पुलिस अधिकारी उन्हें टिहरी जाने कि अनुमति दे दी !
परन्तु थोड़ा आगे बढ़ते ही एक पुलिस अधिकारी ने उनके सिर टोपी उत्तराकर उन्हें बद्धी गालियाँ देते हुए उनकी टोपी को अपने जूते में फंसाकर फाड़ डाला और धमकी दी --घर गए तो घर को उखाड़ दिया जाएगा सुमन शांत रहे और एक सप्ताह घर पर विश्राम किया ,पुलिस बराबर उनके गाँव में उनके किर्या कलापों को देखती रही !
२७ दिसंबर १९४३ को सुमन ने टिहरी राज्य में प्रवेश करने के लिए यात्रा प्रारम्भ कि परन्तु चम्बा में उन्हें आदेश मिला कि आपको तिरही जाना मना है !सुमन वहीं साक पर बैठ गए और जनरल मिनिस्टर और चीफ सेकेटरी को पत्र लिखा कि प्रजामंडल का उदेश्य अकारण संघर्ष करना नहीं है !मुझे पुलिस ने बिना मजिस्टेड की अग्यां के तथा बिना कारण आगे बढ़ने से रोका है उन्होंने पत्र में यह भी लिखा की में आपके पत्र के इन्तजार में यहीं रुका हवा हूँ !
सुमन तीन दिन तक अपने पत्र के उत्तर के इन्तजार में चंबा में ही रुके रहे लेकिन अपने को प्रजा का भाग्या विधाता समझने वाले गर्वीले जनरल मिनिस्टर और चीफ सेकेट्री भला क्या एक नवयुवक समाज सेवी के पत्र का उत्तर क्यों देते !
राज्य के बड़े अधिकारियों को अपने सहानुभूतिपूर्ण लिखे गए पत्र का उत्तर देशभक्त सुमन को गिरफ्तारी के रूप में मिला ३० दिसम्बर १९४३ में सुमन को टिहरी कारागार में बांध कर दिया गया था !कारागार पहुँचते हुए सुमन के वस्त्र छीन लिए गए थे !
उनको नगा करके आठ नंबर वार्ड में बिना किसी विस्तर के अकेले बंद कर दिया गया,उन्हें डराया-धमकाया तथा माफ़ी मांगने को खा गया परन्तु सुमन ने झुकने से इनकार किया और कहा "तुम मुझे तोड़ सकते हो लेकिन मोड़ नहीं सकते "इस पर उन पर बैत बरसाए गए और पैंतीस सेर की बेड़ियाँ उनके पैरों में डाल दी गयी !
सुमन को भूसे और रेत से बनी हुयी रोटियाँ खाने को दी गयी जब सुमन ने उनको खाने से इनकार कसर दिया तो उस शीत ऋतू में उन बाल्टियों और पिचकारियों से ठंडा पानी फेंका गया !सुमन सात दिन तक बिना खाए पिए और बिना विस्तर शीले फर्स उन पर भारी बेड़ियों से जकड़े पड़े रहे !
सुमन को दिर्ड भावना को देखते हुए सातवें दिन जेल ले कर्मचारियों को कुछ झुकना पड़ा,सुमन के बिस्तर कपडे तथा हजामत का सामान उन्हें लोटा दिया गया,बेड़ियाँ खोल दी गयीं !और आश्वासन दिया गया कि उन्हें पत्र ब्यवहार करने कि सुविधा दी जाएगी !
२१ जनवरी १९४४ से सुमन पर राजद्रोह के केस चलाया गया देहरादून के खुर्सिद्याल वकील को सुमन कि पैरवी करने के लिए स्विकिरती नहीं दी गयी !अथ सुमन ने स्वयं पेरवी कि और ब्यान में कहा ----में इस अभियोग को सर्वथा झूठा,बनावटी और बदले कि भावना से चलाया गया मानता हूँ !
मेरे विरुद्ध लाये गये साक्षी सर्वथा बनावटी हैं,वे या तो सरकारी कर्मचारी हैं,या तो पुलिस के आदमी हैं,में जहां अपने भारत देश के लिए पूर्ण स्वाधीनता के धेय में विश्वास करता हूँ!वहां टिहरी राज्य में मेरा और प्रजामंडल का उदेश्य वैध व शांतिपूर्ण उपायों से श्री महाराज कि छत्रछाया में उत्तरदायी शान प्राप्त करना और सेवा के साधने द्वारा राज्य के सामाजिक आर्थिक और सब प्रकार कि उन्नति करना है !
टिहरी महराज और उनके साशन के विरुद्ध किसी प्रकार का विद्रोह,द्वेस और घिर्णा का प्रचार मेरे सिद्धांत के बिलकुल विरुद्ध है!मैंने प्रजा कि भावना के विरुद्ध बने हुए काले कानूनों और कार्यों कि अवस्य आलोचना कि है!इसे मैं प्रजा का जन्म सिद्ध अधिकार समझता हूँ!
सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर विश्वास करने वाला होने के कारण मैं किसी के प्रति घिर्णा और द्वेष का भाव नहीं रख सकता !
श्रीदेव सुमन ने संघर्ष से बचने के लिए प्रजामंडल को पंजिकिर्त करने कि बात चलाई थी,किन्तु झूठा आरोप लगाकर में बंद कर दिया गया है ! तथा मुझे सब प्रकार कि बैध व कानूनी सुविधाएँ से पूर्णत वंचित कर दिया गया !यह मेरे प्रति अन्याय था!
सुमन के ब्यान का राज्यकर्मचारियों पर कोई प्रभाव न पड़ा और उन्हें दो साल कि सजा और दो सो रूपये का आर्थिक दंड दिया गया था! २९ फरवरी ४४ से जेल कर्मचारियों के दुर्ब्योहार के विरोध में सुमन ने अनसन प्रारम्भ कर दिया!
इसकी सूचना राज्य के बाहर न देने के लिए टिहरी रियासत की ओर से पूरे प्रबंध किये गए,परन्तु स्वत्न्र्ता सेनानी सुन्दर लाल बहुगुणा सुमन के अनसन के समाचार, समाचार पत्रों में छाप दिए !तत्कालीन केन्द्रीय असेम्बली के सदस्य बद्रीदत पाण्डेय ने पूछताछ की !
इस पर जेल में सुमन के साथ कुछ नर्म ब्यवहार किया गया,फलस्वरूप उन्होंने अपना अनसन समाप्त कर दिया सुमन से अपना अनसन उन्हें राज्य की ओर से दिए गए अस्वासनों पर ही तोडा था !
अथ वे एक माह तक उन्हें दिए गए आश्वासनों की पूर्ती की प्रतीक्षा करते रहे !
किन्तु राज्य की ओर से कोई आदेश नहीं मिला,जेल के कर्मचारियों फिर कठोर नीति अपनाई ओर सुमन को बेतों की सजा मिलने लगी,परशान होकर सुमन ने तीन मांगे राजा के पास भेजी थी!
जो इस प्रकार थीं !
१-प्रजामंडल को बैध करार करें !
२-मुझे पत्र ब्यवहार की स्वतंत्रता दी जाय !
३-मेरे झूठे मुकदमे की अपील राजा स्वयं सुने !
सुमन ने ये भी कहा कियदि पन्द्रह दिन तक मुझे इन मांगों का उत्तर न मिला तो मैं आमरण अनसन प्रारम्भ कर दूंगा,१५ दिनों तक उत्तर न मिलने पर सुमन ने अपने कथनुसार ३ मई १९४४ से अपना एतिहासिक आमरण अनसन प्रारम्भ कर दिया था !
अनसन प्रारम्भ करते ही सुमन जी पर अमानवीय अत्याचार किये जाने लगे,उनके पैरों में और भरी बेड़ियाँ डाल दी गयी,डंडो से प्रहार किया जाने लगा कई दिनों तक भोजन कराने का असफल प्रयास भी किया गया एक दिन जब उनको बल पूर्वक दूध पिलाने के प्रयास किया गया तो उनके मुहं से रुधिर कि धारा प्रभावित होने लगी थीं !
लेकिन भारतमाता के इस सचे स्प्पोत ने अपना मुहं नहीं खोला,निरंतर अपनी लोहदंड नीति कि असफलता को देखते हुए रियासती कर्मचारियों ने अनसन के १५ वें दिन से उन पर अत्याचार करना बंद कर दिए!
२८ वें दिन डाक्टर और मजिस्टेड ने दूध पिलाने के असफल प्रयास किये !
४८ वें दिन स्वास्थ्य एवेम कारागार मंत्री डाक्टर बेलिराम ने भी सुमन को दूध पिलाने के असफल प्रयत्न किये,डाक्टर बेलिराम ने प्रतापनगर राजा से सुमन को मुक्त कर देने को कहा किन्तु राजा ने कोई उत्तर नहीं दिया!
जब सुमन के आमरण अनसन कि खबर पूरे देश में फेलने लगी तो बद्रीदत पाण्डेय,यम यल ऐ,लोक परिषद् के मंत्री जय नारायण ब्यास और प्रजामंडल के भूतपूर्व अध्यक्ष गोविन्दराम भट्ट ने सुमन के सम्बन्ध में पूछताछ की !
इस पर टिहरी रियासत की ओर से असत्य प्रचार किया गया किवे राजनैतिक बंदी नहीं है और जयनारायण ब्यास को सूचना दी गयी कि उनका स्वास्थ्य असंतोषजनक है और उन्होंने ११ जुलाई को अनसन तोड़ दिया है !
११ जुलाई सुमन का स्वास्थ्य चिंताजनक हो गया डाक्टर बेलिराम ने उन्हें ४ अगस्त १९४४ को महाराजा के जन्म दिवस पर मुक्त करने का आश्वासन दिया,और कहा कि भूखहड़ताल छोड़ दें!राजा अपने जन्म दिवस पर सुमन को मुक्त करने का आदेश युवराज को देकर स्वयम मुंबई चले गये !
राजा का कथन जब भी सुमन को सुनाया गया तो सुमन ने कहा----------क्या मैं छूटने के लिए अनसन कर रहा हूँ ? मुझे छोड़ा गया तो मैं अपने उदेश्यों के लिए बाहर भी अनसन जारी रखूंगा!सुमन के बिगड़े हुए स्वास्थ्य को देखते हुए कुछ रियासती कर्मचारी उन्हें छोड़ने अर्थात जेल से मुक्त करने के पक्ष में थे!
लेकिन कुछ एनी कर्मचारी राजा के आदेश कि आड़ में सुमन को ४ अगस्त तक जेल में रखने के लए कटिबद्ध थे,अपनी योजना को कार्यन्वित करने के लिए उन्होंने प्रचार किया कि सुमन निमोनियां से पीड़ित है!सुमन कि चिकित्सा डाक्टर नौटियाल कर रहा था !
डाक्टर नौटियाल पर सुमन के प्रति सहानुभूति रखने का संदेह होने के कारण ताकतर बलवंत सिंह को सुमन कि चिकित्सा का कार्यभार सोंपा गया निमोनियां कि कथित बिमारी में डाक्टर बलवंत ने सुमन को
कुनैन के नासंत्र्गत( इंट्रावीनस) इंजेक्सन लगा दिए !
कुनैन कि गर्मी ने सुमन के शरीर को सुखा दिया वे पानी, पानी चिलाने लगे !२० जुलाई से ही उन्हें बेहोसी आने लगी २५ जुलाई १९४४ को सुमन चौरासी,८४ दिनों कि भूख हड़ताल के बाद प्रात चार बजे टेरेस मेक्विन और यतीन्द्रनाथ दास की तरह शहीद हो गए !
रात्री को अँधेरे में सुमन का शव एक बोरी में सीकर पास ही बहती भिलंगना नदी में फेंक दिया गया !सुमन की मिर्त्यु के पश्चात तिहरी राज्य की ओर से सुरेन्द्रदत्त नौटियाल को स्पेसियल मजिस्टेड बनाकर सुमन काण्ड की जांच करवाई गयी मजिस्टेड ने पब्लिसिटी अफसर २६ जुलाई वाली प्रेस विज्ञप्ति की पुष्टि की जसमें कहा गया कि निमोनियां के कारण सुमन कि मिर्त्यु हुई टिहरी राज्य कि ओर से एक ओर सुमन कांड कि जांच का नाटक रचा जा रहा था !
तो दूसरी ओर दो हजार रूपये के दंड कि वसूली के लिए उनकी भूसम्पति की कुर्की का आयोजन किया जा रहा था लोक पार्षद की ओर से बद्रीदत पाण्डेय की अध्यक्षता में सुमन जांच कमिटी नियुक्त की गयी सुमन जाँच कमिटी की रिपोर्ट पर लोक परिषद् की स्थाई समिति ने अपना निष्कर्ष दिया कि सुमन कि गिरफ्तारी अकारण हुई है ओर उनके साथ कारागार में अमानुषिक अत्याचार हुए !
महाराजा के प्रति सुमन कि श्रधा भक्ति निसंदेह से सर्वथा रहित और स्फटिकमणि की भाँती निष्कलं थी !
सुमन के मामले में हस्तक्षेप न करके महाराजा नरेंद्रशाह ने अपने कर्तब्य की नितांत अवहेलना की उन्होंने दोषी कमचारियों को कोई दंड नहीं दिया इससे राजा और प्रजा के मध्य स्थित खाई और भी चौड़ी हो गयी सुमन जांच समिति के अध्यक्ष बद्रीदत्त पाण्डेय अनुसार जिस प्रकार महभारत के आठ महारथी मिलकर अभिमन्यु को मारा था
उसी प्रकार टिहरी राज्य के अत्यचारी कमचारियो और कुकर्मी राजा नरेन्द्रशाह ने उस अहिंसात्मक आधुनिक अभिमन्यु (श्रीदेव सुमन )को कारागार में ऐसी यातनाएं दी जिससे सुमन को नारकीय जेल में जीवन को बिताने के बदले प्राण देने पर उतारू होना पड़ा !
कहा जाता है की सुमन के बलिदान प्रभावित होकर ही जनरल मिनिस्टर मोलीचन्द्र शर्मा ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और कहा ----------द्रोपदी के आंसुओं ने अत्याचारी कोंरवों के अत्यचार का अंत किया था !उन्नीस वर्षीय विधवा विनयलक्ष्मी के आंसू टिहरी राज्य के अत्यचारों का अवस्य अंत करेंगे
प्रथम अगस्त १९४९ में जब टिहरी राज्य का विलीनीकरण हुवा, तो टिहरी राज्य विलय महोत्सव पर राष्ट्र का तिरंगा झंडा हाथ में लिए शहीद श्रीदेव सुमन की तपसी अर्धांगिनी विनयलक्ष्मी सुमन ही सबसे आगे थी !
भारत की स्वतंत्रता के बाद श्रीमती विनयलक्ष्मी सुमन कई वर्ष उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं उन्होंने अपने पद पर रह कर योगितापूर्वाक कार्य किया और उत्तराखंड के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है !